कुमार बिंदु की कविता : क्या तुम जादू जानती हो
क्या तुम जादू- टोना करना जानती हो प्रिये
अगर तुम जादू- टोना नहीं जानती हो
तो फिर ऐसा क्यों होता है
कि तुम्हारे आने से बदल जाता है मौसम
देखते ही देखते जेठ का महीना बन जाता है फागुन
कटार- सी तीखी धूप बन जाती है शीतल चांदनी
कुछ देर के लिए ही सही
ये दुनिया ज़ुल्म करना भूल जाती है
बाबा बुल्ले शाह भी अपनी क्रब से उठकर गाने लगते हैं हीर
और बालेश्वर यादव के कंठ से फूट पड़ते हैं बिरहा के बोल-
कउने नगरिया मोरा सइयां जी के डेरा
आहो राम कइसे जइबो ना
अनजान रे डगरिया राम कइसे जइबो ना
मुझे ऐसा लग रहा है प्रिये
कि तुम आती हो तो तुम्हारे जादुई असर से
तानाशाह की क्रूर आत्मा भी अपना मूल गुणधर्म भूलकर
महात्मा गांधी की समाधि पर चली जाती है पुष्प चढ़ाने
दूसरी ओर मुल्क की सीमा पर तैनात फौजी जवान
पड़ोसी देशों के सैनिकों के साथ शेयर करने लगते हैं
अपनी- अपनी प्रेमिकाओं की मोहक तस्वीरें
तुम आओ प्रिये
मुझे पूर्ण विश्वास है
कि तुम आओगी तो कोई हत्यारा
गांधी के सीने में गोली नहीं दागेगा
और हर तानाशाह हिटलर की तरह
खुद मौत के मुंह में घुस जाएगा
तुम आओ प्रिये
मुझे यह यकीन है
कि तुम आओगी तो मेरी यह दुनिया
जहां मौत सौ शक्लों में नाच रही है
जहां ज़िंदगी हर घड़ी मातम मना रही है
तुम्हारे पांवों की आहट सुनकर ही थम जाएंगे
मौत के थिरकते पांव
और वो हिंद महासागर में खुद डूब मरेगी
और यह ज़िंदगी ‘सोरठी- बृजाभार’ के
प्रेम- गीत गुनगुनाने लगेगी