
कु. पूजा दुबे की कविता : मनमीत
मनमीत
स्वप्न में आते हो,
निंदिया चुराते हो।
मेरे तन- मन में
अगन- सा लगाते हो।
पुतली में दिन है
पलकों में रात है
अधरों पर सांझ है
कनक- कनक गात है
नैनों से चैन चुराते हो
मेरे तन- मन में
अगन- सा लगाते हो।
तन- मन बौराया है
चांदनी में नहाया है
अंग- अंग सुर सजे
यौवन गुनगुनाया है
मेरा संगीत चुराते हो
मेरे तन- मन में
अगन- सा लगाते हो।
सागर, मध्यप्रदेश






