डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। बिहार और उत्तर प्रदेश को जोडऩे वाला गया-दीनदयालउपाध्याय रेल जंक्शनों बीच अवस्थित ए-श्रेणी दर्जा प्राप्त प्रमुख रेलस्टेशन डेहरी-आन-सोन ऐसा है, जिसके प्रति यह धारणा बन गई है कि यहां हर ट्रेन के साथ मौत भी इंतजार करती है। यह आकलन डेहरी-आन-सोन रेलस्टेशन के जीआरपी थाना में दर्ज आंकड़ों पर आधारित है, जहां पिछले एक साल में प्लेटफार्म पर उतरने-चढऩे के क्रम में डेढ़ दर्जन यात्रियों को जान गंवानी पड़ी है। पिछले कई सालों का रिकार्ड देखा जाए तो पता चलता है कि इस स्टेशन के प्लेटफार्म का निर्माण के ट्रेन की सीढिय़ों की ऊंचाई के अनुरूप नहीं होने के कारण उतरने-चढऩे में हड़बड़ाहट की स्थिति में औसतन हर महीने एक यात्री की मौत होती है। इस प्रमुख रेलस्टेशन की उपेक्षा और इस स्थिति पर भारत के सोनअंचल (बिहार) केन्द्रित अग्रणी ग्लोबल न्यूजपोटर्ल सोनमाटीडाटकाम (sonemattee.com) में 18.09.2018 को विशेष खबर (जहां हर ट्रेन के साथ इंतजार करती है मौत भी) प्रसारित हुई थी। रेलवे ने खबर में प्रतिध्वनित हुई मौत की आवाज सुन ली है और प्लेटफार्म को ऊंचा करने की प्रक्रिया की कवायद शुरू कर दी है।
हर महीने पैर कटने या जान जाने की होती है घटना
डेहरी-आन-सोन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सचिव और युवा भाजपा नेता अमित कुमार उर्फ बबल कश्यप ने डेहरी-आन-सोन रेल प्लेटफार्म को ऊंचा करने की मांग पूर्व-मध्य रेलवे के महाप्रबंधक और पं.दीनदयालउपाध्याय रेलमंडल के मंडल प्रबंधक से संपर्क कर की थी। बबल कश्य का कहना है कि पूर्व-मध्य रेल जोन के अधिकारियों ने तथ्य के आलोक में इस मांग पर गम्भीरता के साथ संज्ञान लिया और रेल जोन प्रशासन ने प्लेटफार्म को ऊंचा करने के लिए आदेश निर्गत किया है। डेहरी-आन-सोन के रेलयात्रियों को प्लेटफार्म ऊंचा कर दिए जाने के बाद दुर्घटनाग्रस्त नहीं होना पड़ेगा और मौत के आगोश में नहीं जाना पड़ेगा। डेहरी-आन-सोन रेलस्टेशन के प्लेटफार्म इस ए-श्रेणी के अनुरूप नहीं है। ट्रेन से दो-तीन सीढियां उतरकर ही यात्रियों को पैर रखने के लिए प्लेटफार्म का धरातल मिलता है। इस कारण अगर यात्री ट्रेन से उतरने-चढऩे के क्रम में समय की पाबंदी और भीड़ की हड़बडाहट में असावधान हुआ कि उसे जान भी गंवानी पड़ सकती है। हर महीने किसी-न-किसी की जान जाने या पैर कटने की घटनाएं होती भी रही हैं। कमजर्फ कंस्ट्रक्शन के कारण इस स्टेशन के बाबत यात्रियों में यह धारणा कायम होती गई है कि यहां हर ट्रेन के साथ मौत इंतजार करती है।
नहीं है कोच लोकेटर व वाटरवेडिंग मशीन, यात्री शेड का विस्तार भी कम
बबल कश्यप के अनुसार, मुगलसराय और गया के बाद रेलवे को सर्वाधिक आय देने वाला श्रेणी-ए दर्जा रखने के बावजूद डेहरी-आन-सोन रेलवेस्टेशन खूबसूरत आधुनिक परिवहन संसाधन के बजाय किसी कबाड़-घर की तरह दिखता है, जिसका अहसास इसके प्रवेश-द्वार पर पहुंचते ही हो जाता है। उन्होंने कहा है कि रेल प्रशासन को इस स्टेशन प्लेटफार्म पर कोच लोकेटर, वाटर वेंडिंग मशीन और यात्री शेड बनाने की कवायद भी शुरू करनी चाहिए, ताकि ए-श्रेणी वाले इस स्टेशन के यात्रियों को इसका अहसास भी हो सके।
बबल कश्यप ने रेल प्रशासन के महाप्रबंधक, मंडल प्रबंधक और अन्य अधिकारियों के प्रति प्लेटफार्म को ऊंचा करने का संज्ञान लेने और आदेश देने के लिए धन्यवाद प्रकट किया है।
दुनिया में सोनघाटी का अत्यंत प्राचीन और चिह्निïतस्थल है डेहरी-आन-सोन
सोनघाटी पुरातत्व परिषद (बिहार) के सचिव कृष्ण किसलय के अनुसार, डेहरी-आन-सोन वह रेलस्टेशन है, जो भारत के बिहार मे सोन नदी के किनारे है और जहां से रेलवे की ग्रैंडकार्ड रेललाइन गुजरती है। सोन भारतीय उपमहद्वीप के बड़े नद (सोन, सिंधु, ब्रह्म्ïापुत्र) में से एक है। डेहरी-आन-सोन सोन नदी के अमरकंटक (मध्य प्रदेश) से निकलकर बिहार (पटना जिला) में मिलने तक इस नदी के किनारे पर बसा आधुनिक भारत का सबसे बड़ा शहर है। प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों में 7वींसदी के संस्कृत के प्रथम उपन्यासकार वाणभट्ट, ब्रह्म्ïाांड पुराण आदि ने इसे महानद की संज्ञा दी है। कोई दो हजार साल पहले यूरोपीय भूगोलवेत्ता टालेमी ने अपनी पुस्तक में सोन को सोआ कहा है और इससे कोई चार सदी पहले यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने इसे एरनबाओस कहा है, जिसके संगम (गंगा के साथ) पर बसा पोलिम्बोथा (आज का पटना) दुनिया का सबसे बड़ा शहर था।
ब्रिटिश इंडिया सरकार ने नाम रखा डेहरी-आन-सोन
यहां (डेहरी-आन-सोन) सोन नदी पर 1900 में रेल यातायात के लिए चालू हुआ अपने समय का एशिया में सबसे लंबा (तीन किलोमीटर) रेल पुल सोनअपर ब्रिज (आजाद भारत में नेहरू सेतु) था, जो तब दुनिया के सबसे लंबे रेल पुल टे ब्रिज के बाद स्थान रखता था? उसी समय ब्रिटिश इंडिया सरकार ने इस स्टेशन का नाम डेहरी-आन-सोन रखा। आजादी के समय तक डेहरी-आन-सोन रेलस्टेशन पर बिकने वाले रेलटिकट पर देहरी घाट छपा होता था। इसका नाम लंदन के तर्ज पर रखा गया, जिसे टेम्स (थेम्स) नदी के किनारे बसे होने के कारण सिटी आफ टेम्स भी कहा जाता रहा है। टेम्स नदी 18वींसदी में दुनिया का एक सबसे व्यस्त जलमार्ग था। डेहरी-आन-सोन नाम मिलने पहले यह जगह कोई एक गांव भी नहीं थी, सोन नद का अत्यंत प्रसिद्ध देहरी घाट था, जहां से विश्रुत सोन नहर में माल और यात्री यातायात के लिए पांच हजार वाष्पचालित वोट खुलते-चलते थे। शहर के एनिकट-तारबंगला चौराहे के निकट सोननहर के तट पर स्थित वह स्थान, वह प्रस्तर-लिपि (देहरी घाट) कुछ साल पहले जमींंदोज कर दी गई। बहुत-बहुत पहले अति प्राचीन काल में देहरी घाट वह स्थल रहा है, जहां से उत्तरापथ (उत्तर भारत) से दक्षिणापथ (दक्षिण भारत) की ओर प्रवेश किया जाता था। इसीलिए देहरी का अर्थ दरवाजा भी है, देश भी है। सोन की ऊपरी घाटी हजारों साल पहले से गंगा की घाटी से भी बहुत पहले से मानवीय गतिविधियों से गुलजार रही है।
(रिपोर्ट व तस्वीर : निशांत राज, संपादन : कृष्ण किसलय)
Rochak aur atyant saargarbhit aalekh. Badhai Krishna ji aur aapki team ko jisne is yetihasik story ko cover kiya.