सजायाफ्ता की विरासत पर बटन दबाने का सवाल !

 डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। बिहार के बहुचर्चित अलकतरा घोटाला में सजा मिलने पर पूर्व मंत्री इलियास हुसैन की विधानसभा की सदस्यता खत्म होने के कारण डिहरी विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव का मतदान भी लोकसभा के साथ ही 19 मई को होना है। इलियास हुसैन समाजवाद और फिर मंडलवाद के सहारे डिहरी विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक निर्वाचित हुए थे। रोहतास जिला का डिहरी विधानसभा क्षेत्र इस बात उदाहरण है कि यह बदलते सामाजिक ध्रुवीकरण वाला क्षेत्र है और यहां चुनाव जनता लड़ती है, भले ही नेता अपने-अपने दावे करते रहें। इस क्षेत्र का सामाजिक समीकरण इतना जटिल है कि पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं, आखिरी फैसला मतदाता करते हैं।
मंडलवाद और राष्ट्रवाद भी हो चुका है ध्वस्त
यादवों-मुसलमानों की निर्णयकारी मत संख्या के बावजूद यहां मंडलवाद का माई समीकरण 2005 में ध्वस्त हो चुका है, जब बतौर विकल्प निर्दलीय प्रत्याशी प्रदीप जोशी की जीत हुई। क्षेत्र में प्रबल राष्ट्रवाद के पोषक दल भाजपा के मौजूद होने के बावजूद 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार ज्योति रश्मि जोशी हिंदू कार्ड खेलकर मैदान मार लेने में सफल रही थीं। प्रदीप जोशी और ज्योति रश्मि का जनाधार ग्रामीण इलाके, खासकर महिलाओं में माना जाता है। इससे जाहिर है कि डिहरी विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में सघन आकार ग्रहण करने वाला प्रबल राष्ट्रवाद शहर (डेहरी-आन-सोन) में प्रवेश करते ही विरल हो जाता है, जहां वैश्य समाज बहुल मतदाताओं के साथ अन्य जाति समुदाय की बड़ी मिश्रित संख्या है।
महिलाएं अब निर्णायक भूमिका में
डिहरी विधानसभा क्षेत्र में अब महिला मतदाता भी निर्णायक भूमिका में आ गई हैं, जिसे 2010 में ही रेखांकित किया गया। तरुण और नए महिला मतदाताओं ने मतदान केेंद्रों तक पहुंचने का उत्साह दिखाती रही हैं। चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, दोनों समुदायों की महिला मतदाताओं के साथ धार्मिक आग्रह जुड़ा हुआ है। मतदान केेंद्रों पर पहुंचने में पिछड़े और मुस्लिम समुदाय की महिलाएं आगे रहती हैं। अगड़े समुदाय की महिलाएं आम तौर पर कम संख्या में मतदान करने निकलती हैं।
उपचुनाव में भाजपा ने किया है प्रयोग
अभी तक डिहरी विधानसभा क्षेत्र में एनडीए या भाजपा के राजपूत, कुशवाहा, वैश्य समुदाय के उम्मीदवार को सफलता हासिल नहींहुई है। इसलिए डेढ़ साल के लिए होने वाले इस उपचुनाव में सत्यनारायण सिंह यादव को मैदान में उतारने का प्रयोग भाजपा ने इस बार किया है। डिहरी विधानसभा क्षेत्र में 1२ प्रत्याशी ललन सिंह (राष्ट्रीय समता पार्टी सेकुलर), फिरोज हुसैन (राजद), सत्यनारायण सिंह यादव(भाजपा), ब्रजमोहन सिंह (सीपीआई), प्रदीप कुमार जोशी (राष्ट्र सेवा दल), डा. शैलेश कुमार सागर, तनवीर अंसारी, रामोगोविन्द दुबे, कृष्ण कुमार, प्रदीप कुमार, आनंद कुमार चौधरी, वीरेंद्र कुमार (सभी निर्दलीय) चुनाव के मैदान में हैं। फिलहाल कहा जा रहा है कि राजद के माई समीकरण में भाजपा के सत्यनारायण यादव (ओबरा को पूर्व विधायक) और मोमिन कान्फ्रेन्स के तनवीर अन्सारी (प्रसिद्ध स्वतत्रता सेनानी अब्दुल क्यूम अंसारी के पोता) ने इस बार सेंध लगा दी है तो दूसरी ओर टिकट में राजपूत या वैश्य प्रत्याशी की उपेक्षा के कारण भाजपा के एक तबके में नाराजगी भी है।
बेशक फिरोज दागदार नहीं, मगर सवाल तो है!
मतदाताओं को तय करना है कि उन्हें कोई ढाई दशक पहले अलकतरा घोटाला करने के बावजूद पार्टी की सामाजिक ताकत की आड़ में अपने जुगाड़ के आधार पर सत्ता में बने रहने वाले सजायाफ्ता मोहम्मद इलियास हुसैन के उत्तराधिकारी को चुनना है या अन्य चेहरों में से किसी अपेक्षित अनुकूल को? बेशक फिरोज हुसैन दागदार नहींहैं और पढे-लिखे नई पीढ़ी का युवा चेहरा हैं। इसलिए इस सवाल के साथ भी डिहरी विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव हो रहा है कि बाप के पाप का भागी बेटे को क्यों बनाया जाए? फिलहाल तो यही माना जाना चाहिए कि फिरोज हुसैन अपनी पार्टी की नीति और लाइन के अनुरूप लोकतांत्रिक तरीके से अपने जनसंपर्क के दायरे का विस्तार करेंगे और सामाजिक सरोकार की नई सौहाद्र्रपूर्ण जमीन तैयार करने की पहल करेंगे? आका (नेता) के नाराज हो जाने के डर से या मनचाही खुशी के पोषण मात्र के लिए ईमान की बात नहींकहने वाले चाटुकार कार्यकर्ताओं से घिरे रहने वाले पिता की तरह जम्हूरियत को ठेंगे पर रखने और वोटर को रियाया समझने के अंदाज में नहीं होंगे?
सजा के बाद सारे कुतर्क बेकार, अब साथ न पेड पत्रकार और न पैसाखोर चाटुकार
इलियास हुसैन ढाई दशक से यही कहते रहे कि उन्हें अलकतरा घोटाले के झूठे केस में फंसाया गया। मगर अब कोर्ट से सजायाफ्ता होने के बाद यह कुतर्क बेकार हो चुका है। अब वह जेल में हैं। न तो उनके मौकापरस्त पेड पत्रकार उनके लिए आवाज उठाने का नाटक कर रहे हैं और न ही उनके पैसाखोर चाटुकार किसी आंदोलन-हंगामे का मंजर बन रहे हैं। असम कनेक्शन वाले इलियास हुसैन ने समाजवाद का चोला पहनकर चार दशक पहले संसदीय राजनीति की यात्रा शुरू की थी। अलकतरा घोटाला उनकी जन-धन लूट की तांडव-यात्रा की एक पराकाष्ठा है, जो उनके मंत्री बनते ही शुरू हो गई थी। भ्रष्टाचार उजागर करने वाले पत्रकारों के बारे में इलियास हुसैन की टिप्पणी होती थी कि वे (पत्रकार) ब्लैकमेल करते हैं, पैसे नदेने पर विरोध में छापते हैं। इनके विरूद्ध अलकतरा घोटाला का एक कांड डिहरी थाना में भी दर्ज है। इलियास हुसैन ने दो दशक पहले चारण-भाट अर्थात सम्मानरहित पेड पत्रकार नहींबनने पर डेहरी-आन-सोन के एक वरिष्ठ पत्रकार को झारखंड से प्रकाशित क्षेत्रीय दैनिक अखबार के मालिक पर हटाने का दबाव बनाया था। डालमियानगर के एक युवा पत्रकार को समाचार नहींछपे, इसके लिए पटना के एक बड़े दैनिक अखबार के पेड पत्रकार के जरिये प्रलोभन दिया गया था। हालांकि तब उस युवा पत्रकार के दस्तावेजों के आधार पर रिपोर्ट पटना के दूसरे दैनिक में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित हुई थी।

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