सोनघाटी में विश्व की प्राचीन सभ्यता

 

पटना/डेहरी-आन-सोन (बिहार)/जपला (झारखंड) -कृष्ण किसलय। सोनघाटी दुनिया का अति प्राचीन करुष क्षेत्र है, जहां हजारों सालों से हड़प्पा सभ्यता से पूर्व मानवसमूहों का शिकार-कृषि, युद्ध-व्यापार,धर्म-दर्शन, तकनीक-शिल्प आदि के लिए आवागमन होता रहा और सभ्यताओं-संस्कृतियों के बीच संघर्ष-संधि का क्रम चलता रहा है। सोनघाटी मानव जीवन के विकास-विस्तार और सत्ता से विद्रोह की आदिभूमि है, जहां परिस्थिति की समय यात्रा के साथ परिवर्तन की परतें बिखरती-जमींदोज होती रही हैं।

 अंडमान की तरह प्रजनन-संकट में अति प्राचीन करुष क्षेत्र सोनघाटी की जनजाति

अति प्राचीन सिंधु-सरस्वती-वैदिक सभ्यता काल से ऐतिहासिक बुद्ध काल तक भारतीय महाद्वीप के अति प्राचीन मानव समुदाय वाले सोनघाटी क्षेत्र के बिंध्य पर्वतश्रृंखला का कैमूर पर्वतीय हिस्सा (बहुत बाद में रोहतासगढ़) लागातार युद्धों का सामना करने के कारण इतिहास के हाशिये पर चला गया और वक्त के गर्द-गुब्बार में देश-प्रदेश की मुख्यधारा से पिछड़ गया। जिस तरह अंडमान की आदिम जनजातियां आदमी के शिकारी जीवन-काल की प्रतिनिधि हैं, उसी तरह रोहतास (सोनघाटी) की अति प्राचीन जनजाति आदमी के कृषि जीवन के आरंभ की प्रतिनिधि रही हैं और आज दोनों स्थलों की प्राचीन जनजातियां प्रजनन-संकट के दौर से गुजर रही हैं।पुरातत्विक धरोहर रोहतास किले को लेकर तिलस्मी-धार्मिक-पौराणिक कहानियां गढ़ी जाती रही हैं, मगर इतिहास-तत्व व समाजशास्त्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण शोधकार्य अब भी बाकी है।

हरिओम शरण के निर्देशन में खुदाई

भारत भूमि के मूल अधिवासी व अति प्राचीन कुड़ुख भाषियों के स्थल सोनघाटी के कई दुर्लभ अवशेषों को खोजने का श्रेय सोनघाटी पुरातत्व परिषद को हैैं, जिसके आधार पर कबरा कलां में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणके अधीक्षण पुरातत्वविद (झारखंड) हरिओम शरण के निर्देशन में खुदाई जारी है।

डेहरी-आन-सोन (जयहिंद परिसर) में  सोनघाटी पुरातत्व परिषद की पश्चिमी इकाई

20वीं सदी के अंतिम दशक में बिहार में स्वयंसेवी संस्था सोनघाटी पुरातत्व परिषद की टीम सोन नदी के पूरब में इतिहास-अवशेष की खोज में लगी थी। उसी समय व्यक्तिगत स्तर पर विज्ञान लेखक-पत्रकार व सोनमाटी संपादक कृष्ण किसलय और कृषि विज्ञानी अवधेशकुमार सिंह सोन नदी के पश्चिम में खोजबीन कर रहे थे। तब डेहरी-आन-सोन (जयहिंद परिसर) में प्रतिष्ठित समाजवादी विश्वनाथ प्रसाद सरावगी की अध्यक्षता मेें सोनघाटी पुरातत्व परिषद की पश्चिमी इकाई का गठन कर खोजबीन को गति दी गई।

पटना से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं में अनेक रिपोर्ट प्रकाशित

जमीनी स्तर पर बिहार के रोहतास और औरंगाबाद जिलों में पुरातत्व सामग्री की खोज करने व चिह्निïत करने का आरंभिक कार्य 20वीं सदी के अंतिम दशक के आखिरी सालों में सोनघाटी पुरातत्व परिषद ( सोन नदी की पश्चिमी भाग इकाई, अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद सरावगी,  सचिव कृष्ण किसलय, संयुक्त सचिव अवधेशकुमार सिंह, परिषद के अन्य सहयोगियों  के साथ) शुरू किया था। तब दैनिक आज, दैनिक हिन्दुस्तान और पटना से प्रकाशित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी अनेक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थीं।

..प्राचीन पुरातत्व संपन्न स्थल घरी, लेरूआ, अर्जुन बिगहा, तुम्बा

सोनघाटी पुरातत्व परिषद को ही घरी, लेरूआ, अर्जुन बिगहा, तुम्बा आदि अति प्राचीन पुरातत्व संपन्न स्थलों को खोजने-चिह्निïत करने का श्रेय है। उसी समय कैमूर पर्वत पर शैलाश्रयों की खोज का एक अभियान (ट्रैकिंग) देश के अद्र्धसैन्य बल के नेतृत्व में चला था। बिहार से झारखंड के अलग हो जाने के कारण सोनघाटी पुरातत्व परिषद के पश्चिमी हिस्से का कार्य स्थगित हो गया। सोन का पूर्वी भाग बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बन गया।

ऊपरी तौर पर अध्ययन के आधार पर 3500 साल पुराना स्थल

 

सोनघाटी पुरातत्व परिषद (मुख्यालय जपला, झारखंड) के सचिव तापस डे के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 20वींसदी के अंत में ही कबरा कलां को ऊपरी तौर पर अध्ययन के आधार पर 3500 साल पुराना स्थल घोषित किया था। अब उत्खनन से इतिहास के क्षेत्र में नया अध्याय जुडऩे की संभावना प्रबल हो गई है। अति प्राचीन सभ्यता स्थल वाली सोनघाटी देश-दुनिया के खोजकर्ताओं-विद्वानों के लिए अब आकर्षण का नया केेंद्र होगी।

11 फीट नीचे गहराई में मिले एक साथ 23 घड़े

तापस डे के अनुसार, कबराकलां टीले पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद पूनम बिंद की टीम सौ मीटर के दायेर में पांच बिंदुओं पर खुदाई कर रही है। सबसे ऊंचाई वाली स्थिति पर  11 फीट नीचे गहराई में जाने पर एक साथ 23 घड़े मिले हैं। इसके बाद इस बिंदु पर खुदाई रोक दी गई है। इस उत्खनन-अवलोकन पर शीर्ष स्तर पर विचार-विमर्श हो रहा है और उच्च आदेश के बाद ही खुदाई फिर से शुरू होगी। दो अन्य बिंदुओं पर भी खुदाई रोक ली गई है। जिन दो बिंदुओं पर खुदाई जारी है, उनमें से एक पर सात फीट नीचे की गहराई में टी आकार दीवार दिखने लगी है और दूसरे बिंदु की गहराई में टेराकोटा रिंगवेल प्राप्त हुआ है।

(तस्वीर : निशांत राज व इंजीनियर रणजीत कुमार, सह सचिव सोनघाटी पुरातत्व परिषद)

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