पिछले दिनों सोन नद अंचल के आंचलिक लेखन-पत्रकारिता जगत जुड़े दो व्यक्तियों का निधन हो गया। वरिष्ठ संवाददाता गोपाल प्रसाद सिंह का निधन असमय हुआ। शिक्षाविद सेवा निवृत्त प्रधानाध्यापक कवि नंदकिशोर सिंह राही का निधन 82 साल की उम्र में हुआ, जो वरिष्ठ पत्रकार भूपेन्द्रनारायण सिंह के पिता थे। दोनों के प्रति सोनमाटीडाटकाम परिवार की संवेदना। यहां सोनमाटीडाटकाम के दर्शकों-पाठकों के लिए प्रस्तुत है जनता दल के बिहार प्रदेश महामत्री संजय रघुवर का यह लेख, जिसे उन्होंने श्रद्धांजलि स्वरूप प्रसारणार्थ भेजा है। -संपादक
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हिन्दी दैनिक प्रभात खबर के जिला संवाददाता (औरंगाबाद) गोपाल प्रसाद सिंह औरों से अलग थे। खबरों की उनकी प्राथमिकता सूची में शोषण-उत्पीडऩ और छल-छद्म से संबंधित बातें शीर्ष पर होती थीं। आज के परिवेश में जीवन मू्ल्य बदल गए हैं और नैतिक मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं का क्षरण हो रहा है। पत्रकारिता का पेशा और सेवा भी इससे बेअसर नहीं है। अब अखबार बहुत हद तक विज्ञापनदाताओं की खबरों का हो गया है। ऐसी स्थिति में गरीबों, जरूरतमंदों की आवाज अखबार के पन्नों पर अपवाद छोड़ दें तो नहीं दिखती। अन्याय, अत्याचार या जनसरोकार से जुड़े प्रश्न और समाज-देश के लिए समर्पित लोगों से संबंधित ख़बरों को कम महत्व मिल रहा है या उनके लिए स्थान ही नहीं होता या फिर संवाददाता वैसी खबरों के संग्रह-प्रेषण की जरूरत ही नहीं समझते। जाहिर है, जन-सरोकार के सवाल पर प्रशासनिक आक्रमण करने वाला, भ्रष्टाचार के सवाल और सरकार की विफलता के सवाल पर संघर्ष करने वाला सामाजिक कार्यकर्ता विज्ञापन देने-दिलाने में समर्थवान नहीं हो सकता। ऐसे हालात में गोपाल प्रसाद सिंह सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए उम्मीद की किरण थे।
माना कि अगस्त क्रांति के शहीद का कद किसी भी राजनेता से बड़ा
औरंगाबाद में महाराजगंज मोड़ (रमेश चौक) पर 1942 की अगस्त क्रांति के शहीद जगतपति कुमार की प्रतिमा और पार्क निर्माण का फैसला हुआ था, जो उपेक्षित पड़ा हुआ था। इस प्रश्न को स्थानीय सामाजिक समीकरण के पूर्वाग्रह से मुक्त हो प्रमुखता के साथ गोपाल प्रसाद सिंह ने उठाया था और अनेक बार प्रभात खबर में इस मुद्दे को स्थान दिया था। हालांकि जिला प्रशासन, बिहार सरकार के नगर विकास विभाग ने और मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने भी संज्ञान नहीं लिया था। बावजूद गोपाल प्रसाद सिंह ने अपने सामाजिक दायित्व और जानने की जवाबदेही का निर्वहन किया। शहीद जगतपति के मामले में उन पर समाचार प्रकाशित करने पर कुछ प्रमुख लोगों द्वारा दबाव डालने का प्रयास किया, मगर उन्होंने दिमागी दिवालियेपन और मौजूदा राजनीतिक की संकीर्णता से समझौता नहीं किया। और, यह माना कि अगस्त क्रांति के शहीद का कद और महत्व किसी भी अन्य राजनेता के मुकाबले बड़ा है।
दम के साथ उठाया लोकनायक के नाम वाले दफन किए गए शिलापट्ट को
इसी तरह, औरंगाबाद में अनुग्रह इंटर कॉलेज के सामने 1942 अगस्त क्रांति के महानायक और चौहत्तर आंदोलन के लोकनायक (जयप्रकाश नारायण) की स्मृति में स्टेडियम का निर्माण किया गया था। इस स्टेडियम के निर्माण के लिए काफी संघर्ष हुआ था। स्टेडियम का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। अधिकारियों ने साजिश के अंतर्गत लोकनायक जयप्रकाश का नाम स्टेडियम के द्वार पर नहीं लिखा गया। इंदौर स्टेडियम का शिलालेख तत्कालीन जिलाधिकारी दीपक कुमार (अब बिहार के मुख्य सचिव) के द्वारा लगाया गया था। उस शिलालेख को अराजक तत्वों ने तोड़ा और जमीन में दफन कर दिया। बाद में शिलालेख को शहर के कुछ लोगों ने खोज निकाला। उस घटना को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया था।
एक और घटना है। औरंगाबाद में एक जिला शिक्षा अधीक्षक पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप थे। उनके विरोध में शिक्षकों और जनता के साथ मैं, मेरे साथियों और समान विचार के लोगों ने सड़क पर संघर्ष किया था। इस मामले पर औरंगाबाद के अन्य समाचारपत्रों के संवाददाताओं ने या तो संज्ञान नहीं लिया या फिर कहीकोने में उपस्थिति भर दर्ज करा दी। गोपाल प्रसाद सिंह ने उस संघर्ष को प्रभात खबर में दमदार तरीके से भेजा, जिसे समाचारपत्र में प्रमुखता के साथ स्थान प्राप्त हुआ। इस तरह के अनेक उदाहरण हैं। इसमें शक नहीं कि औरंगाबाद में इन्फार्मेशन (सूचना) और पीआर (जनसंपर्क) की पत्रकारिता से अलग अपनी खबरनवीसी के जरिये जनता और प्रशासन को आगाह करने वाली वह सार्वजनिक आवाज भी थे। उनका असमय संसार छोड़ देना दुखद है।
(यह लेखक का अपना विचार है)
(तस्वीर : इमा टाइम्स से, गोपाल प्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि व्यक्त करते औरंगाबाद के संवाददाता)
-संजय रघुवर
प्रदेश महामंत्री, लोकतांत्रिक जनता दल, बिहार
मोबाइल 9934264159
ऐतिहासिक गांव चंद्रगढ़ के निवासी थे नंदकिशोर सिंह राही
बेयासी साल की उम्र में यह लौकिक संसार छोड़ गए और अपनी उम्र पूरी कर अपने परिवार जनों से कि अनजाने अलौकिक संसार के लिए विदा ले गए शिक्षाविद नंदकिशोर सिंह राही सोन नद अंचल के बारुन स्थित उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे। इससे पहले वह गया जिले के गुरारू में भी उच्च विद्यालय मे प्रधानाध्यापक के पद पर कार्य कर चुके थे। अपने सेवा-जीवन के बड़ा समय गया जिला में बीताने के कारण आज बेहद कम लोग जानते हैं कि राहीजी एक कवि भी थे और लेखक भी। हालांकि उनका कोई महत्वपूर्ण लेखन-प्रकाशन आज सामने नहीं है, मगर वह अपने लेखन-मानस का पारिवारिक धरोहर और सामाजिक सरोकारों से जुड़े अपने पत्रकार पुत्र के रूप में छोड़ गए हैं। उनके पुत्र भूपेन्द्रनारायण सिंह सोन नद अंचल के औरंगाबाद, रोहतास दोनों ही जिलों में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं और गोपालनारायण सिंह विश्वविद्यालय के जनसंपर्क पदाधिकारी के रूप में सेवारत हैं।
नंदकिशोर सिंह राही औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक नवीनगर प्रखंड के अति ऐतिहासिक गांव चंद्रगढ़ के मूल निवासी थे, जिन्होंने रोहतास जिले के सोन तट के सबसे बड़े शहर डेहरी-आन-सोन के गांधीनगर को अपना आवास बनाया।
(सोनमाटी समाचार)