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कहानी /कवितासोन अंचल

लोकभाषा/भोजपुरी : कवि कुमार बिन्दु की तीन कविताएं

बिहार में विश्वविश्रुत सोन नद के तट के सबसे बड़े शहर डेहरी-आन-सोन के वरिष्ठ कवि कुमार बिन्दु की लोकभाषा भोजपुरी में तीन रचनाएं सोनमाटीडाटकाम के पाठकों के लिए खास तौर पर प्रस्तुत है। हालांकि कुमार बिन्दु किसानों के आधुनिक गांव पाली (अब नगर परिषद का वार्ड) में रहते हैं, मगर उनका पुश्तैनी गांव मकराई (अब नगर परिषद का वार्ड) पहले पशुपालकों का प्राचीन गांव था। इनकी इन रचनाों में सोन अंचल के मूल बाशिन्दों की आत्मा ध्वनित हुई और प्रकृति संग जीवन जीने की अन्तरवस्ुत का रेखांकन-चित्रांकन हुआ है। लोकभाषा (भोजपुरी) की तीनों रचनाओं के केेंद्र में विराट प्रकृति और लघु मनुष्य के सार्वभौमिक रिश्ते का कल-कल, छल-छल विस्तार है। प्रीत है और प्रीत की सर्वव्यापी पीड़ा है। आदमी की सभ्यता-यात्रा है और सभ्यता-यात्रा के संघर्ष मेें आदमीयत की सर्वग्राह्य चिंता है।    – सम्पादक
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(1) सोन गावे पिरितिया के गीत रे

जुहिला नउनिया बनल कइसे मीत रे
सोन गावे सनेहिया के गीत रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

सोन के रूपवा सोना लेखा दमके
झक झक पनिया चानी लेखा चमके
जेकर जवनिया नया गढ़े रीत रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

परबत के राजा मैकल के बिटिया
सुघर सोन के बनाई रे संघतिया
लेके सनेसा गइल बनल उहे तीत रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

नरमदा के सखी रहे जुहिला नउनिया
रूप-रंग जेकर रहे धधकत अगिनिया
नरमदा समुझि के सोन गइले रीझ रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

कैमूर पुरोहित केहेंजुआ पवनिया
चलली बिआह करे नरमदा दुल्हिनिया
सोन के रास देखी बर गइले खीस रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

जुहिला अउर सोन से तूर के इयारी
पछिम के राह धइली नरमदा कुंआरी
हहर के भहरल सनेहिया के भीत रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

सोन अउरी जुहिला बनले संघतिया
बांह गहि धरी लेले पूरब के रहतिया
तुरले मुलुक में जात-पात के रीत रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

सोन के रहतिया केहेंजुआ जे रोकले
लकीर के फकीर के छतिया उ फरिले
कैमूर पुरोहिता नवां देले सीस रे
सोन गावे पिरितिया के गीत रे

 

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(2) चान अकेले…

चान अकेले कवन देस जाए
ना कुछो बोले ना बतियाए
चान अकेले..

गते गते डेग धरे
नयना से नेह झरे
पियासल धरतिया के
हियवा जुड़ाए
चान अकेले…

कवना मुलुक से आवे
कवना मुलुक के धावे
केकरा के देखे खातिर
जिया अकुलाए
चान अकेले…
केकरे सनेसा पाई
रतिया के धावा धाई
चलत डगरिया ना
मन अलसाए
चान अकेले…

 

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(3) गीत-काव्य / खुनवां के रंगवा एके बा

जात धरम जनि निरख रे साधु
सब में परनवां एके बा
गोर सांवर बा देहिया लेकिन
खुनवां के रंगवा एके बा

केहू बांचे वेद पुरान के
केहू बाइबिल अउर कुरान के
ढाई आखर ना प्रेम के बांचे
कोई बहुरिया जग में राम के
कोई ना सुमिरे दीन धरम के
मूल मंतरवा एके बा, जात धरम…

मंदिर के दीवार बा केहू
मसजिद के मीनार बा केहू
सूली सलीब के केहू सनेसा
खालसा के तलवार बा केहू
कोई ना निरखे राम रहीम के
रूप सरुपवा एके बा, जात धरम…

 

 

 

कवि : कुमार बिन्दु
पाली, पो. डालमियानगर-821305
डेहरी-आन-सोन,

जिला रोहतास (बिहार)

 

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