कुमार बिंदु की दो कविताएं : एक मेरी माई और दूसरी कविता उर्वशी
1. मेरी माई
मेरी अस्सी वर्षीय माई भी बड़ी अजीब है !
सावन के महीने में
पुख पुनर्वसु नक्षत्र में
जब खेतों में लगी धान की रोपनी
सुदिन भी ऐसा कि किसी दूर देश से आकर
आकाश में मंडराने लगे बादल
हरहर- हरहर
झरझर- झरझर
पानी बरसाने लगे काले- काले बादल
तब माई के गदगद हृदय से निकला यह उद्गार –
वाह भगवान वाह !
और वह आसमान की ओर अपने दोनों हाथ उठाकर
भगवान के प्रति आभार जताने लगी
पता नहीं क्या- क्या मनौती भी भखने लगी
वहीं, चैत के महीने में
जब मेरे खेतों में पक चुकी थी गेंहू की फसल
कुछ खेतिहरों के खलिहानों में भी आ चुकी थी फसल
कोई कटनी, तो कोई दवनी की तैयारी में जुटा था खेतिहर
कोई खेत से खलिहान तक बोझा ढोने में जुटा था खेतिहर
तभी किसी दूर देश से आए थे कुछ आवारा बादल
झमाझम- झमाझम पानी बरसाने लगे थे आवारा बादल
तब मेरी इसी माई के तन- मन में लग गई थी आग
क्षोभ से, रोष से उसका चेहरा हो गया था लाल
वो गुस्से में आकाश की ओर ताकी थी
फिर बिफरकर तल्ख़ स्वर में बोली थी
‘ दुसमनवां के अबहीं बरसे के रहे ‘
और दुश्मनी कर रहे भगवान के विरुद्ध
असमय पानी बरसा रहे ईश्वर के विरुद्ध
वह दनादन अपनी कोठरी से निकालकर
खुले आंगन में फेंकने लगी थी सारा हर्बा हथियार
हसुआ, खुरपी, टांगी, फरसा, गंड़ासा और कुदार
सचमुच कितनी अजीब है मेरी अस्सी वर्षीय माई !
अन्याय पर भगवान से भी भिड़ जाती है मेरी खेतिहर माई !
2. उर्वशी
आज मेरे गांव के एक परती खेत में गड़ा है सामियाना
पंचलाइटों की जगमग रोशनी में
दमक रहा है, चहक रहा है
बावन चोप का सामियाना
और सामियाने में नाच रही है
सजी- संवरी एक सुंदर युवती
तबले की ताल पर
ढोलक की थाप पर
हारमोनियम के सुर पर लचक रही है उसकी कमनीय काया
सामियाने के एक छोर से दूसरे छोर तक
गूंज रहा है उसका संगीतमय स्वर
तबले की ताल पर
ढोलक की थाप पर
हारमोनियम के सुर से सुर मिलाकर गा रही है
वो सिनेमा का गीत
दुनिया ने सुन ली है छुपकर अपनी प्रेम कहानी
हो राजा जानी
होय होय राजा जानी
मर गई मिट गई शरम के मारे हो गई पानी पानी
हो राजा जानी
होय होय राजा जानी…..
सामियाने में बैठे हर बराती का तन
दूल्हा, सहबाला और समधी का भी मन
गीत के लय पर
गीत के धुन पर
गीत के बोल पर
मस्ती में झूम रहा है
नाच रही पतुरिया के अंग- संग डोल रहा है
ओ पुरुरवा !
देखो आज की रात धरा पर
उतर आया है स्वर्ग
देखो आज की रात धरा पर
उतर आए हैं सब देवगण
देखो आज की रात धरा पर
देवराज इंद्र का सजा है दरबार
और इंद्र- सभा में नाच रही है स्वर्ग की श्रेष्ठ अप्सरा उर्वशी
देवगण हर्षित हैं
ऋषिगण मन मुदित हैं
धन्य धन्य हो रहा सबका जीवन
धन्य धन्य हो रहा धरा का आंगन
ओ पुरुरवा !
तुम कहां हो पुरुरवा
देखो तुम्हारी प्रेयसी
स्वर्ग की अपूर्व सुंदरी उर्वशी
आज इस सामियाने में नाच रही है
अपना अनमोल जोबन लुटा रही है
चंद रुपयों के लिए
चंद सिक्कों के लिए
ओ प्रेमी पुरुरवा
तुम कहां हो, तुम कहां हो पुरुरवा ?
संपर्क: डेहरी ऑन सोन, रोहतास, बिहार 09939388474