स्मिता गुप्ता की दो कविताएं : ऐ दिल तू यह जान ले और दूसरी हम इतिहास के सर्जक हैं
1. ऐ दिल तू यह जान ले
जो सच है उसे मान ले
ऐ दिल तू ये जान ले…
समझा जिसे ,माना जिसे
चाहा था अपनाना जिसे
पर यह न सोचा था कभी
वो मेरे ना बन पाएंगे
वो बेगाने बन जाएंगे
वो अपने से बेगाने बने
यह सच है तू जान ले
ऐ दिल तू ये जान ले…
अब उदास है हर रात
अब उदास है हर दिन
कैसे जिए हम तेरे बिन
कि बुझ गए सब चिराग
मेरे दिल में अंधेरा करके
ये सच है इसे मान ले
ऐ दिल तू ये जान ले…
दिल दुख का सहना होगा
उफ्फ भी नहीं करना होगा
अश्कों की दरिया में मुझे
अब हर पल डूबना होगा
वो फिर लौट के ना आएंगे
वो मेरे अपने ना बन पाएंगे
यह सच है इसे मान ले
ऐ दिल तू यह जान ले …
2. हम इतिहास के सर्जक हैं
आप लेखक हैं
आप कुछ भी लिख सकते हैं
आप पत्रकार हैं
आप कुछ भी छाप सकते हैं
आप नेता हैं
आप कुछ भी बोल सकते हैं
आप कुछ भी कर सकते हैं
हम आम आदमी
आपकी, इनकी, उनकी, सबकी
कुछ भी सुन लेते हैं
सच के नाम पर परोसा गया
झूठ देखकर, सुनकर भी
हम चुप रहते हैं, कुछ कहते नहीं हैं
क्योंकि हम आम आदमी हैं
हमारी बिसात क्या है
हमारी औकात क्या है
कि हम आपसे, इनसे, उनसे
कुछ अपनी दिल की कहें
मगर आप यह भी मत भूलें
जब हम बोलेंगे
जब हम कहेंगे
जब हम करेंगे
तो आप सब खाक में मिल जाएंगे
इतिहास की काल कोठरी में कैद हो जाएंगे
क्योंकि हम इतिहास के सर्जक हैं
क्योंकि हम सत्य के अन्वेषक हैं
क्योंकि हम जीवन के उन्मेषक हैं
स्मिता गुप्ता, गाजियाबाद
डा. किरण यादव की कविता : मां मुझे जन्म लेने दो
मां मुझे जन्म लेने दो
मुझको भी इस जग में जीने दो
रिश्ते- नाते की लड़ियों में गूंथ जाने दो
मैं भी पिता के अरमान को
साकार करूंगी
उनके मान की सम्मान की
सुरक्षा करूंगी
मुझे भी पढ़- लिखकर कुछ बन जाने दो
मां मुझे भी जन्म लेने दो
मुझको भी इस जग में जीने दो
मैं पन्ना धाय बनूंगी
स्वजन के लिए
मैं लक्ष्मीबाई बनूंगी
परिजन के लिए
सावित्रीबाई फुले बन अलख जगाने दो
मां मुझे जन्म लेने दो
मुझको भी इस जग में जीने दो
मैं जग में जन्म लेकर
कुछ ना कुछ कर जाऊंगी
ज्यादा ना सही थोड़ा ही सही
अपना फर्ज जरूर निभाऊंगी
मुझे भी ममता का परम सुख तो पाने दो
मां मुझे जन्म लेने दो
मुझको भी इस जग में जीने दो
रिश्ते- नाते की लड़ियों में गूंथ जाने दो
डा. किरण यादव,
कैमूर