कुमार बिंदु की कविता : जादूगरनी रात और जादुई सपने
कल फिर आयी थी सांवली सलोनी रात
माथे पर चांद की टिकुली लगाए
जुल्फों में सितारों के गजरे सजाए
दबे पांव
मेरे घर, मेरे गांव
कल फिर लायी थी जादूगरनी रात
अपनी जादुई आंखों में भरकर
अपनी कजरारी पलकों में छुपाकर
मेरे लिए
उसके लिए, सबके लिए
नींद की पोटली
उस पोटली में थे
मेरे लिए
उसके लिए, सबके लिए
विविध रंग के सपने, जादुई सपने
सांवली सलोनी रात
जादूगरनी रात
कल मेरे घर ही नहीं
कल मेरे गांव ही नहीं
मणिपुर में उन महिलाओं के घर भी तो गई होगी
जिसे दुःशासनों ने सरेआम द्रौपदी बनाया था
जिसे खुली सड़कों पर नंगे घुमाया था
उन स्त्रियों की आंखों में
पता नहीं कैसे जादुई सपने अर्पित की होगी रात ?
मणिपुर ही नहीं
फिलिस्तीन के ग़ज़ा शहर में भी तो गई होगी रात ?
अपने- अपने प्रेमी से बिछुड़ी प्रेमिकाओं को
अपने- अपने पति को खोयी विधवाओं को
अपने- अपने पिता के दुलार से वंचित बच्चों को
फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की स्वप्निल आंखों को
पता नहीं नींद कैसे जादुई सपने सौंपी होगी रात ?
क्या मणिपुर और फिलिस्तीन की दुख में डूबकर
स्त्रियों के अथाह दुख और शोक से कातर होकर
अपने माथे से दम- दम दमकती चांद की टिकुली
अपनी जुल्फों से चम- चम चमकते सितारों के गजरे
क्या नोचकर फेंक दी होगी यह जवां रात ?
क्या दुख की नदी में
क्या शोक के सागर में
डूब गई होगी सांवली सलोनी रात
जादूगरनी रात ?
संपर्क : डेहरी ऑन सोन, रोहतास, बिहार 09939388474
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