नई दिल्ली/डेहरी-आन-सोन (बिहार)-कृष्ण किसलय। Thanks India! आभार, अतिथि देवो भव के देश…! इसी अंदाज में भारत-भूमि से हजारों मील दूर दूसरे महाद्वीप की धरती पर रहने वाली उस विदेशी बेटी ने सत्कार-भाव की आत्मीय एवं सामाजिक सरोकार की अग्रणी भारतीय परंपरा के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की है। बेशक, यह भारतीयों और भारत के पर्यटन उद्योग के लिए उत्साह जगाने वाला पक्ष है, मगर इससे जुड़ा देश के सरकारी दफ्तर की औपचारिक रुखी व्यवस्था का अति उदासीन पक्ष भी सामने आया है।
अनजान देश, अजनबी लोग, पूरब-पश्चिम की सभ्यता का हजारों सालों का फासला
पश्चिमी सभ्यता के काला सागर के तटवर्ती, यूरोप के दूसरे सबसे बड़े और रूस के सीमावर्ती देश युक्रेन से वहां की नवयुवती ओकसाना डैविड्यूक भारत-भ्रमण पर आई थी। तब वह दुनिया के सबसे सुंदर समुद्री तट वाले भारतीय प्रदेश गोवा में थी और उसे उसी दोपहर अपने देश वापस लौटने के लिए कुवैत जाने वाली एयरबस (एयर अरबिया) की फ्लाइट को पकडऩे के लिए हवाईअड्डा जाना था। मगर हवाईअड्डे की फ्लाइट के निर्धारित समय पर पहुंचाने वाली बस थोड़ी देर हो जाने के कारण उससे छूट चुकी थी और वह हवाईअड्डे से 45 किलोमीटर दूर निरुपाय खड़ी थी। वह अपनी सरजमीं से बहुत-बहुत दूर, कोई साढ़े पांच हजार किलोमीटर दूर, उस अनजान देश में उन अजनबी लोगों के बीच थी, जो उसकी भाषा तक नहीं जानते थे। उसके सामने एक दुर्निवार-दुर्योग की तरह पूरब-पश्चिम की सभ्यता का हजारों सालों का फासला मौजूद था।
उक्रेनी भाषा-लिपि का स्मार्टफोन से अंग्रेजी अनुवाद के जरिये पर्यटन का रोमांच
ओकसाना डैविड्यूक तो भारत में अपनी युक्रेन की भाषा-लिपि का अपने स्मार्टफोन से अंग्रेजी में अनुवाद कर कामचलाऊ संवाद के जरिये पर्यटन के रोमांच का आनंद प्राप्त कर रही थी। जाहिर है, वह अपनी भाषा, अपने भेष के कारण अनजाने लोगों के बीच अपने मन की व्यथा ठीक-ठीक व्यक्त करने में सक्षम नहीं थी। उस विषम परिस्थिति में अनजान देश की उस अजनबी लड़की की पीड़ा का अनुमान लगाया ताज होटल ग्रुप के गोवा स्थित इंस्टीट्यूट आफ हास्पिलिटी मैनेजमेन्ट के असिस्टेंट प्रोफेसर सौरभ कृष्ण ने। तब शायद ओकसाना के पास पर्याप्त भारतीय मुद्रा (रुपये) भी नहीं थे। सौरभ कृष्ण ने अपनी जेब में मौजूद छोटी रकम में से ओकसाना डैविड्यूक को एक हजार रुपये दिए और उसे हवाई अड्डा छोडऩे के लिए ताज होटल ग्रुप की कार का व्यक्तिगत स्तर पर प्रबंध किया।
वक्त की उस अफरा-तफरी में सिर्फ नाम भर की जानकारी
समय बेहद कम था, फिर भी वक्त की उस अफरा-तफरी में ओकसान एयर अरबिया की हवाई जहाज पर समय से चढ़कर अपने देश चली गई। वह सौरभ कृष्ण का सिर्फ नाम भर जान सकी थी और सौरभ कृष्ण भी इतना ही जानते थे कि सवा चार करोड़ की आबादी वााल पूर्वी यूरोप का बड़ा देश युक्रेन दुनिया भर में आर्थोडोक्स चर्च के लिए जाना जाता है और जो 1922 में सोवियत संघ का एक संस्थापक देश रहा है।
तीन दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद फेसबुक पर ढूंढ लिया
आखिर अनजाने देश के मददगार अजनबी को थैक्स मोर, वेरीमच थैंकयू कहने के लिए ओकसाना डैविड्यूक ने तीन दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद फेसबुक पर ढूंढ लिया और अति आभारपूर्ण भाषा में सौरभ कृष्ण को संदेश भेजा कि वह भारत के प्रति अत्यधिक आदर भाव व्यक्त कर रही है। ïवह इस देश की आतिथ्य सत्कार की अति प्राचीन पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्य अतिथि देवो भव के प्रति अपने, अपने परिवार और अपने देश की ओर से अतीव कृतज्ञता ज्ञापित कर रही है।
अतिथि को देवता तुल्य मानना भारतीय संस्कृति का श्रेष्ठ सामाजिक मूल्य
वास्तव में अतिथि को देवता तुल्य मानना भारतीय संस्कृति का एक श्रेष्ठ सामाजिक मूल्य है। एक भारतीय अतिथि का अपने सामथ्र्य भर स्वागत-सत्कार, मान-सम्मान, सुख-सुविधा और सौहाद्र्रपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराने में कोर-कसर नहीं छोड़ता। यह संस्कार हर भारतीय को बचपन से ही माता-पिता और परिवार से प्राप्त होता है। अतिथि देवो भव के साथ वसुधैव कुटुम्बकम की दार्शनिक अवधारणा भी भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से रही है कि दुनिया के हर देश के लोग सगे-सम्बन्धी की तरह हैं।
मगर देखिए कि कैसी है देश की अफसरशाही, दफ्तर की व्यवस्था?
भारतीयों में स्वाभाविक तौर पर मौजूद ये दोनों सांस्कृतिक-सामाजिक मूल्य (अतिथि देव भव और वसुधैव कुटुम्बकम) भारत के पर्यटन उद्योग के व्यापक विस्तार के बेहतर आधार बन सकते हैं। मगर पर्यटन उद्योग के लिए जरूरी इन गुणों को पल्लवित-पुष्पित करने के दायित्व का निर्वाह सरकारी दफ्तर या अफसरशाही किस तरह कर रही है, इसका उदाहरण भी इसी घटना से जुड़ा हुआ है।
इस घटना के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय को संबंधित साक्ष्यों के साथ जानकारी दी गई तो प्रधानमंत्री कार्यालय से सौरभ कृष्ण के लिए राष्ट्रीय पर्यटन अवार्ड पर विचार करने का पत्र केेंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय को अग्रसारित कर दिया गया। कुछ दिनों बाद पर्यटन मंत्रालय के यात्रा व्यवसाय प्रभाग के सहायक महानिदेशक कल्याण सेनगुप्ता की ओर से सौरभ कृष्ण को जवाब मिला कि पर्यटन विस्तार के क्षेत्र में उल्लेखनीय-अग्रणी कार्य करने के लिए राष्ट्रीय पर्यटन अवार्ड देने की निर्धारित श्रेणी (राज्य सरकार, वर्गीकृत होटल, हेरीटेज होटल, मान्यताप्राप्त गाइड, पर्यटन परिवहन संचालक, पर्यटन अभिकर्ता, पर्यटन संचालक आदि) के अंतर्गत आप नहीं आते हैं। यदि भविष्य में राष्ट्रीय पर्यटन अवार्ड के लिए नई श्रेणी जोड़ी गई तो आप आवेदन दे सकते हैं।
जाहिर है, सरकारी विभाग की सीमा के बावजूद दो सुदूर देशों की भावनाओं के मद्देनजर इस पत्र में कम-से-कम एक आत्मीयतापूर्ण पंिक्त जोड़कर उत्साहवद्र्धन किया जाना तो संभव था ही।
(इनपुट व तस्वीरें : दिल्ली से गोविन्दा मिश्र, डेहरी-आन-सोन से निशांत राज)