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1. बीसवीं सदी में सोनघाटी की रंगयात्रा (किस्त-1)

-वर्तमान बहुचर्चित सांस्कृतिक संस्था अकस (अभिनव कला संगम) का आरंभिक नाम था कला संगम
-1988 में ठाकुर कुंजविहारी सिन्हा की अध्यक्षता में हुआ था कला संगम का अनौपचारिक गठन
-रोहतास उद्योगसमूह के बंद होने के बाद डेहरी-आन-सोन में पांच दशकों से लगातार जारी नाट्य मंचन की थम गई गतिविधि को जीवित करने के उद्देश्य से शहर के युवा नाटककारों, निर्देशकों-रंगकर्मियों ने किया था गठन
-कुछ दिनों बाद 1989 में ही युवा नाटककार-रंगकर्मी-पत्रकार कृष्ण किसलय बनाए गए अध्यक्ष और लिया गया नाटक प्रतियोगिता कराने का निर्णय, जून 1989 में हुई थी पहली नाटक प्रतियोगिता,

-इसके बाद सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत संस्था का नाम हुआ अभिनव कला संगम

 

डेहरी-आन-सोन (बिहार)-सोनमाटी समाचार।  बिहार के विश्वविश्रुत सोन नद तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन में लगातार 27 सालों से अखिल भारतीय लघु हिंदी नाटक प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली संस्था अभिनव कला संगम का आरंभिक नाम ‘कला संगमÓ था। कला संगम के गठन की जरूरत डेहरी-आन-सोन के नाटककार, रंगमंच निर्देशक, रंगकर्मी और संस्कृति प्रेमी युवाओं ने तीन दशक पहले तब महसूस की थी, जब पांच दशकों से लगाताार जारी नाटक मंचन की गौरवशाली गतिविधियां डालमियानगर स्थित एशिया प्रसिद्ध विशाल उद्योगसमूह (रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड के कारखाने) के बंद हो जाने से थम गई थीं। कला संगम से पहले डेहरी-आन-सोन के रंगमंच पर सक्रिय व नाटक प्रतियोगिता की आयोजक नाट्य संस्थाएं शास्त्री कला परिषद (निर्देशक-नाटककार किशोर वर्मा), जयशिव कला मंदिर (निर्देशक-नाटककार चंद्रभूषण मणि) आदि निष्क्रिय थीं।
साल 1988 के आखिरी में रंगकर्मी ठाकुर कुंजविहारी सिन्हा की अध्यक्षता में कला संगम के आरंभिक अनौपचारिक (तदर्थ) स्वरूप का गठन किया गया, जिसमें रंगकर्मी शैलेन्द्र कुजूर व अतीक अहमद उपाध्यक्ष, वरिष्ठ रंगकर्मी रमेशचंद्र गुप्त, सचिव, संस्कृतिकर्मी रामकृष्ण शर्मा उप सचिव, सुजीतकुमार दीक्षित कोषाध्यक्ष और रंगकर्मी-चित्रकार शशिभूषण वर्मा अंकेक्षक बनाए गए। इस बैठक में शहर के युवा नाटककार-रंगकर्मी-पत्रकार कृष्ण किसलय (दहेज पर केेंद्रित अपने समय के बहुचर्चित रंगमंचीय नाटक ‘समाज ने क्या दियाÓ और देशद्रोहियों के राजफाश करते कथानक वाले नाटक ‘आवाज गूंज उठीÓ के लेखक) को सांस्कृतिक संयोजक और प्रतिभावान युवा रंगकर्मी स्वयंप्रकाश मिश्र को उप सांस्कृतिक संयोजक बनाया गया।


कुछ महीनों बाद कृष्ण किसलय को अध्यक्ष बनाया गया और इनकी अध्यक्षता में अप्रैल 1989 में हुई बैठक में संस्था के विधिवत औपचारिक स्वरूप का गठन कर कार्यकारणी विस्तार किया गया और नाटक प्रतियोगिता कराने का निर्णय लिया गया। यह फैसला लिया गया था कि संस्था की गतिविधि को समाज को बांटने की प्रवृत्ति वाली धार्मिक-राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखा जाएगा और विशुद्ध सांस्कृतिक गतिविधि व नाटक में रुचि रखने वाले लोगों को जोड़ते हुए संस्था-संचालन का लोकतांत्रिक-पारदर्शी तरीका अपनाया जाएगा।तब सवाल था कि समाज को जोडऩे वाले संस्कृति-कर्म नाटक की वैभवशाली परंपरा को कैसे प्रभावशाली तरीके से जीवित किया जाए और उसे व्यापक दूरगामी विस्तार दिया जाए?

इसके लिए कला संगम के आरंभिक संरक्षकों पीपीसी लिमिटेड (अमझोर, बिहार) के कार्यकारी निदेशक लोकेश्वर प्रसाद, पूर्व उद्योगमंत्री विपिनविहारी सिन्हा (तिलौथू), जगजीवन सेनाटोरियम के संस्थापक निदेशक व सैनिक विद्यालयों के समूह के गवर्नर रहे डा. मुनीश्वर पाठक, वरिष्ठ समाजवादी विश्वनाथ प्रसाद सरावगी (जयहिंद टाकिज), वरिष्ठ चिकित्सक डा. अवधविहारी सिंह. डा. रागिनी सिन्हा, डा. ओमप्रकाश लाल व डा. प्रभा अग्रवाल, प्रतिष्ठित उद्यमी-व्यवसायी अरुणकुमार गुप्ता (रोहतास री-रोलिंग मिल), उदय शंकर (मोहिनी इंटरप्राइजेज), रत्नदीप कुमार (त्रिमूर्ति टाकिज), सुरेशचंद्र गुप्त (बाजार समिति सदस्य), मनोज कुमार (अप्सरा टाकिज) आदि से विस्तृत चर्चा में हर संभव मदद की अपील की गई।

प्रथम अखिल भारतीय लघु हिंदी नाटक प्रतियोगिता जून 1989 में पांच दिनों की हुई, जिसके लिए पहली बार लकड़ी का मंच बनारस के कारीगरों ने महंगीलाल धर्मशाला परिसर (जयहिंद सिनेमा रोड) में बनाया था। प्रतिष्ठित कारोबारी व फिल्म कलाकार (पीयूषी कपड़ा शो-रूम) हरीशचंद्र गुप्ता के सौजन्य से शहर के भव्य व सुविधापूर्ण अतिथिगृह शांति निकेतन (पाली रोड) के पूरे भवन में प्रतिभागी रंगकर्मियों (नाट्य दलों के कलाकारों) को ठहराया गया था। कला संगम (अभिनव) की प्रथम नाटक प्रतियोगिता में चार प्रदेशों की 14 नाट्य संस्थाओं के करीब डेढ़ सौ महिला-पुरुष रंगकर्मियों ने हिस्सा लिया था और 26 तरह के पुरस्कार दिए गए थे।
पहली प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में नाट्य इतिहास पर शोध करने वाले प्रो. अनिल ठाकुर सुमन (रांची), निर्देशक-रंगकर्मी सरूर अली अंसारी (पटना) और प्रेमशंकर प्रेम व उदयकुमार सिन्हा (दोनों डालमियानगर के वरिष्ठ रंगकर्मी) शामिल थे। वरिष्ठ रंगकर्मियों को सम्मानित करने का सूत्रपात भी पहली बार कला संगम ने किया और अपने वक्त के प्रतिष्ठित रंगकर्मियों अवधेशकुमार शर्मा, एएन श्रीवास्तव (निर्देशक) व डा. मुनीश्वर पाठक, अभयचंद मेहरा (कलाकार) प्रथम कला संगम रंगकर्म से सम्मानित किए गए।

(विश्वविश्रुत सेन नद तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन को केेंद्र में रखकर लिखी जा रही   बीसवीं सदी में सोनघाटी की रंगयात्रा       क्रमश: जारी)
सौजन्य : विश्वविश्रुत सोन नद के तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन (बिहार) को केेंद्र में रखकर लिखी जा रही सोनघाटी की रंग-यात्रा की सामग्री वरिष्ठ नाटककार-निर्देशक किशोर वर्मा, वरिष्ठ लेखक-पत्रकार अमरेेन्द्र कुमार, वरिष्ठ रंगकर्र्मी रमेशचंद्र गुप्ता, शशिभूषण प्रसाद श्रीवास्तव, चौरसिया सुरेन्द्र के प्रकाशित लेख, अभिनव कला संगम के संस्थापक अध्यक्ष कृष्ण किसलय (नाटककार-रंगकर्मी-कथाकार-पत्रकार) की आकाशवाणी पटना से प्रसारित रेडियो वार्ता व नवभारत टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें सुप्रसिद्ध रंग समीक्षक डा. ब्रजवल्लभ मिश्र का भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर व्याख्यान, रेडियो नाटक लोहासिंह के यशस्वी लेखक-अभिनेता रामेश्वर सिंह कश्यप, वरिष्ठ नाटककार श्रीशचंद्र सोम, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर रहे वरिष्ठ साहित्य समालोचक डा. नंदकिशोर तिवारी के विचार हैं और पत्रकार संसद (डेहरी-आन-सोन) के सांस्कृतिक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार-रंगकर्मी नवेन्दु के हिरना-हिरनी आख्यान, सोनमाटी (समाचार-विचार पत्र), सोनधारा-1992 (अकस स्मारिका), उत्कर्ष (संपादक उपेन्द्र कश्यप, युवा लेखक पत्रकार) व अन्य से भी सामग्री का संदर्भवश उपयोग हुआ हैं।

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